आर्य और काली छड़ी का रहस्य-20
अध्याय-7
कौन है वो
भाग-1
★★★
सुबह सूरज की पहली किरण के साथ ही आर्य हिना और आयुध ने अपनी तैयारियां कर ली थी। 7:00 बजते ही वह कार्यालय की तरफ चल पड़े थे। रात को हिना ने जाने से पहले बताया था कि सुबह एक बार के लिए सभी आचार्य कार्यालय में मिलेंगे। यह एक अच्छा मौका होगा सबसे साथ में बात करने का।
चलते-चलते आयुध बोला “हिना देखो तो सरी! हमारे आश्रम के अंदर कितना बड़ा षड्यंत्र रचा जा रहा है। वह भी हमारे आश्रम के आचार्यों के द्वारा।”
“हां” हिना बोली “बेईमानी का कोई ओहदा नहीं होता। बेईमानी करने वाले को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह कौन से ओहदे पर है और कौन से पर नहीं। उसे बस बेईमानी करनी होती है।”
आर्य बोला “लेकिन फिर भी इसकी कोई हद तो होनी चाहिए थी। बेईमानी के लिए अपने ही लोगों की जान दांव पर लगा देना किसी तरीके से सही नहीं है।”
सभी जल्द ही कार्यालय पहुंच चुके थे। उन्होंने कार्यालय की नीचे उतरने वाली सीढ़ियों पर अपने जल्दी-जल्दी चलते हुए कदम रखें। कार्यालय के अंदर ही उन्हें सभी आचार्य एक साथ दिखाई दिए। हर कोई किसी ना किसी बैठने वाली जगह पर बैठा हुआ था। चार अचार्य तो कार्यालय में जलने वाली अंगीठी के पास बैठे थे। महिला अचार्या वहां मौजूद सोफे पर विराजमान थी। दो अचार्य कार्यालय के कोने में पड़े टेबल के सामने रखी कुर्सियों पर बैठे थे। एक कार्यालय की मुख्य कुर्सी पर। वह कुर्सी आचार्य वर्धन की होती थी। मगर आज वहां आचार्य ज्ञरक बैठे हुए थे। आचार्य वर्धन के सबसे भरोसेमंद साथी।
आचार्य ज्ञरक अपनी कुर्सी पर बैठे-बैठे बोले “क्या बात हुई बच्चों..? तुम दोनों एक साथ सुबह सुबह यहां? सब ठीक तो है?”
आर्य को यहां सभी आचार्य दिखे मगर वह अचार्य वर्धन को नहीं देख पाया। वो यहां कमरे में नहीं थे।
हिना अचार्य ज्ञरक की बात सुनकर बोली “मुझे आप सब से एक जरूरी बात करनी थी। एक सबसे बड़ी जरूरी बात जो हमारे पूरे आश्रम के लिए है।”
हिना की बात सुनकर सभी के चेहरे उसकी ओर घूम गए। हर कोई उसे आशंकित नजरों से देख रहा था। ना जाने वह कौन सी बात करने वाली थी।
आचार्य ज्ञरक ने कहा “हां कहो बेटी। हम सब यहां तुम्हारी बात सुनने के लिए ही बैठे हैं, तुम जो भी कहोगी हम उसे ध्यान से सुनेंगे।”
“वो.. यहां आश्रम में..” हिना बात शुरू कर रही थी की आर्य ने उसे लगभग बीच में से काटते हुए उसकी बात के साथ दूसरी बात जोड़ते हुए सब को कहा “वो.... यहां... आश्रम में इसके भाई के रहने का मन नहीं कर रहा।”
आर्य के बोलते ही हिना और आयुध उसकी तरफ देखने लगे। दोनों ही उसे मोटी मोटी नजरों से घुर रहे थे। उसने हिना की बात को लगभग बदल कर दूसरी बात सामने रख दी थी। मगर क्यों कोई भी इसका जवाब नहीं जानता था।
आचार्य ज्ञरक बोले “मगर ऐसा क्यों? आखिर उसे क्या समस्या है?” आचार्य ज्ञरक आश्रम के हर एक विद्यार्थी को ठीक से जानते थे। वह आयुध को भी जानते थे। उन्होंने वहां खुद को आयुध पर केंद्रित किया और उससे पूछा “क्यों आयुध? आखिर तुम्हें यहां क्या समस्या है? तुम आश्रम में क्यों नहीं रहना चाहते। तुम्हें पता है ना हम आश्रम में जिन हालातों के साथ रह रहे हैं उन हालातों के बाद यहां से जाने का सवाल ही नहीं उठता। बाहर जाने के बाद तुम्हें सिर्फ और सिर्फ मौत ही मिलेगी। तुममें इतनी क्षमता भी नहीं कि तुम आश्रम से बाहर जाकर अपना बचाव कर सको। अभी तुम्हें कुछ भी नहीं आता । जहां तक मुझे याद है शायद तुम सुरक्षात्मक प्रणाली को भी ठीक से नहीं सीखे हो।”
आचार्य ज्ञरक की बात पर आयुध को कोई भी जवाब नहीं सूझ रहा था। मन ही मन वह आर्य को हर वह गाली देना चाहता था जो उसे आती थी। वह उसे मुक्का मारने का मन भी बना रहा था। उसने खुद पर धीरज रखा और कहा “आचार्य, यह बात सच है कि मैं कुछ दिन पहले आश्रम से बाहर जाने के बारे में सोच रहा था मैंने परसों बाहर जाने की कोशिश भी की थी। मगर इसके बाद मैं इस बात को समझ गया कि बाहर शिवाय खतरे की और कुछ भी नहीं है। इसलिए मैंने अपना बाहर जाने का इरादा पूरी तरह से बदल दिया। मुझे इस बात का खेद है कि मैं अपने इस बदले हुए इरादे को अभी तक किसी को बता नहीं पाया। मगर मैं आप सबके सामने कहता हूं कि मैं यह आश्रम छोड़कर नहीं जाना चाहता। मैं यहीं रहूंगा। मैं यहां रह कर भोजनालय में खाना बनाने का ही काम करूंगा। वह मेरा मनपसंद काम है और मैं उसे छोड़ना नहीं चाहता।”
हिना को यह सुन कर खुशी हुई मगर उसे इस बात का अफसोस था की वह अपनी बात नहीं कह सकी। आर्य ने उसे रोक दिया था और अब वह तब तक अपनी बात को रोकने के लिए मजबूर थी जब तक उसे आर्य से यह पता नहीं चल जाता कि उसने उसे क्यों रोका।
आचार्य ज्ञरक आयुध की बात सुनकर बोले “यह तो अच्छी बात है कि तुमने आश्रम से जाने का अपना फैसला बदल दिया। इससे ना सिर्फ हम खुश हैं बल्कि तुम्हारी बहन भी खुश होगी। यहां आश्रम का हर एक सदस्य तुम्हारे इस फैसले से खुश होगा।”
आश्रम में बैठे दूसरे आचार्यों ने जोरदार तालियां बजाई। सभी की तालियां धीरे-धीरे शांत होती गई।
आर्य आचार्यों की भीड़ में अभी भी आचार्य वर्धन के बारे में सोच रहा था। आचार्य की बात खत्म हो जाने के बाद और तालियों के बंद हो जाने के साथ ही आर्य ने आचार्य ज्ञरक से पूछा “मुझे यहां आचार्य वर्धन नहीं दिखाई दे रहे? वह आखिर कहां गए?”
आचार्य ज्ञरक ने सधे हुए अंदाज में जवाब दिया “दरअसल जैसा कि तुम जानते हो जल्द ही नया साल आरंभ होने वाला है। नए साल के आरंभ को लेकर आश्रम में समारोह के आयोजन की तैयारियां चल रही है। इस बार मौसम का कोई अदेंशा नहीं है, लगातार बर्फबारी हो रही है तो आने वाले दिनों में यह बर्फबारी और बढ़ जाएगी। इससे समारोह तय समय से काफी पहले शुरू होगा। अगले 3 दिनों बाद। इसीलिए आचार्य वर्धन मुख्य आचार्य होने के नाते समारोह की तैयारियों से संबंधित समान का इंतजाम करने के लिए शहर गए हैं।”
“उनके वापस कब तक आने की उम्मीद है?” आर्य ने जानने की इच्छा जताई।
आचार्य ज्ञरक ने जवाब दिया “इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता। बाहरी दुनिया में काफी सावधानी रखनी पड़ती है तो छोटे से काम में भी समय लगता है। मगर वह कम से कम समारोह से पहले आ जाएंगे। अब वो कल भी आ सकते हैं और परसों भी। या फिर उससे अगले दिन भी।”
मतलब अगले 3 दिनों में आचार्य वर्धन कभी भी यहां आश्रम में वापस आ सकते हैं। आर्य ने बात को समझते हुए अपनी पलकें झपकाईं और फिर आयुध और हिना को चलने के लिए कहा। दोनों उसके कहने से पहले ही चलने के लिए तैयार थे। दोनों ही जल्दी कार्यालय से बाहर निकल कर आर्य से यह जानना चाहते थे कि उसने किले वाली बात क्यों नहीं होने दे। आयुध तो यह जानने के लिए उछल रहा था कि उसने इन सब में उसे क्यों घसीट दिया। वह अभी फैसला करना नहीं चाहता था लेकिन अब कहने के बाद उसने भी आश्रम ना छोड़ने का फैसला पूरी तरह से पक्का कर लिया। जल्द ही तीनों बाहर की तरफ चल पड़े।
बाहर आते ही हिना ने आर्य का हाथ पकड़ा और उसे चलने से रोक लिया। उसने आर्य से पूछा “आखिर तुमने हमारी बात को बीच में क्यों रोका? मैं उन्हें किले वाली बात बताने ही वाली थी, मगर तुमने बीच में रोककर सब चौपट कर दिया। बताओ आखिर तुम चाहते क्या थे? क्यों रोका?”
वही आयुध बोला “और बात रोकने तक तो ठीक था, मगर तुमने मुझे क्यों बीच में घसीटा? मेरे आश्रम छोड़कर जाने वाली बात को क्यों उन सबके सामने किया? मुझे तो वहां जवाब देने के लिए कुछ सुझ भी नहीं रहा था, थक हार कर मुझे आश्रम ना छोड़ने का फैसला करना पड़ा।”
“बताता हूं..” आर्य ने गहरी सांस ली और अपने आसपास देखा। वह देखना चाहता था कि उसके आस पास कोई है तो नहीं। फिलहाल उसके आसपास कोई भी नहीं था। उसने उन दोनों से कहा “तुम लोगों ने वहां मौजूद सभी आचार्यों को देखा था। वहां इस वक्त सभी के सभी सात आचार्य थे। वो आचार्य जो सफेद चौगा पहनते हैं। इन सात आचार्यों में से ही कोई एक गद्दार है। एक तरह से तुम वहां सभी से बात करके हमारे आश्रम के गद्दार अचार्य को भी सब बता देने वाली थी। इससे वह सावधान हो जाते और आगे कुछ भी कर लेते। हो सकता था वह सावधान होने के बाद आश्रम छोड़कर भी चले जाए। अंधेरों से मिले होने की वजह से उन्हें कोई नुकसान भी नहीं पहुंचाएगा।”
“तो फिर इन सब में तुम क्या चाहते हो? क्या हम इस बारे में उनसे बात ही ना करें?” हिना ने सवाल किया।
“नहीं। मुझे वहां अचार्य वर्धन नहीं दिखे। मैं चाहता हूं तुम उनके होने पर सबके सामने बात करो। अगर तुम आचार्य वर्धन के सामने बात करोगी तो दूसरे आचार्य को कोई मौका नहीं मिलने वाला। अचार्य वर्धन अपना फैसला तुरंत ले लेंगे।”
आयुध आर्य की बात पर बोला “मगर फैसला तो इनमे से भी कोई ले सकता है। आचार्य ज्ञरक मुख्य कुर्सी पर बैठे थे, ऐसे में फैसले लेने के सारे अधिकार उनके पास थे। और वह तुरंत फैसला लेते भी।”
“लेकिन फिर भी मुझे यकीन नहीं है।” आर्य बोला “मुझे उनमें से किसी पर भी यकीन नहीं है। हो सकता था खुद अचार्य ज्ञरक ही दोषी हो। फिर तो फैसला लेने का कोई सवाल ही नहीं उठता।”
“लेकिन आर्य...” इस बार हिना बोल रही थी “हमने कल ही फैसला किया था कि हमें क्या करना है। मैंने तुमसे कहा था कि सब शक्ति मंत्र के लिए गए होंगे मगर सिवाय एक आचार्य के। ऐसे में उस आचार्य की गैरमौजूदगी अपने आप यह साबित कर देती कि कोई किले में गया था।”
“तुम्हें क्या लगता है जाने वाला अचार्य बेवकूफ था। उसने इसे लेकर कोई ना कोई रास्ता बनाया ही होगा। उसे यह बात अच्छे से पता होगी कि कल को कोई भी कह सकता है कि किले में कोई गया था। ऐसे में वह अपने बचने का रास्ता तैयार करके ही किले में गए होंगे। लेकिन हिना,” आर्य एक पल के लिए रुका “तुम इसमें भी काफी आगे का सोच रही हो। इस तरह की नौबत तो तब आती जब हम यह साबित कर पाते कि कोई किले में गया था। हमारे पास ऐसा कोई सबूत नहीं जो यह बताने के लिए काफी हो। बिना सबूत के बात के मायने ही ना रहते। फिर हमारी बातों को तो तुम खुद ही वहम का नाम देती रहती हो, ऐसे में आचार्य भी इसे वहम का नाम देने से नहीं कतराएंगे।”
“लेकिन मैंने तो वहां पैरों के निशान देखे थे ना? ऐसे में वहम वाली बात.. मुझे हजम नहीं हो रही।” हिना ने अपनी नाक ऊपर चढा ली थी।
“और वह पैरों के निशान अब वहां नहीं है..” आर्य ने मजबूत पक्ष रखा “यहां 24 घंटे कभी ना कभी बर्फबारी होती रहती है, हवाएं भी चलती है। उन सब में वह पैरों के निशान कब के गायब हो चुके हैं।”
हिना इस बार बिल्कुल खामोश दर्शक की तरह खड़ी रही। आयुध काफी पहले खामोश हो चुका था। वह दोनों आर्य की बात को भी नजरअंदाज नहीं कर सकते थे। आर्य का कहना भी बिल्कुल सही है, उन्हें आचार्य वर्धन के होने पर ही बात करनी चाहिए। वह बात की गहराई को समझते हैं, और वह उन सात आचार्यों में भी नहीं आते जिन पर शक है। वह इसलिए क्योंकि वह आश्रम में सुनहरा चौगा पहनते थे।
हिना कुछ देर खामोश खड़े रहने के बाद बोली “तो अब हमें आचार्य वर्धन के आने पर बात करनी चाहिए...। अगर तुम्हारे हिसाब से सोच कर चले तो।”
“हां..” आर्य ने तुरंत अपनी सहमति दे दी “यही हमारे लिए बढ़िया रहेगा।”
“मगर तुम्हें ऐसा नहीं लगता तब तक ज्यादा ही देर हो जाएगी... हमें नहीं पता आचार्य वर्धन कब वापस आएंगे। वह अगले 3 दिनों में कभी भी आ सकते हैं। तब तक हम क्या करेंगे।”
आर्य ने अपने ऊपर के होंठों को दांतों में दबा लिया। उसने सोचते हुए कहा “तब तक हम दो काम कर सकते। और दोनों ही काम ऐसी होंगे जो सबूत इकट्ठा करने के लिए किए जाएंगे, क्योंकि आचार्य वर्धन के आने के बाद भी हमें बात साबित करने के लिए सबूत चाहिए। तो पहला काम, हम सभी आचार्यों पर नजर रख सकते हैं। इससे यह होगा जब भी कोई अचार्य दूसरी बार किले में जाएगा तो हम सबको आगाह कर देंगे। इससे वह रंगे हाथों पकड़े जाएंगे। और दूसरा...., हमें किसी ऐसी चीज के बारे में सोचना होगा जो हमें रंगे हाथों से पकड़ने के शिवाय कोई और दूसरा परिणाम दें। कोई दूसरा सबूत जो बिना आचार्य के किले में जाए यह साबित कर दें कि वह किले में गए थे। या फिर कोई भी किले में गया था।”
“मतलब अब हमें सबूत इकट्ठा करना हैं...” आर्य की बात खत्म होते ही आयुध ने अपना तीर फेंक दिया। “कोई भी ऐसा सबूत हो जो हमारी बात को साबित करें। वह रंगे हाथों वाला सबूत भी हो सकता है, और कोई दूसरा भी जो हम ढूंढेगें।”
“हां..” आर्य आयुध को इस बात के लिए शुक्रिया कहना चाहता था की वह उसकी बातों के मतलब को आसानी से समझ रहा है।
“मुझे इसमें किसी भी तरह का एतराज नहीं।” आयुध हिना की तरफ देखते हूए बोला “इसका कहना भी बिल्कुल सही है। हमें पहले सबुत ढूंढने चाहिए। तुम क्या कहती हो हिना?”
हिना अभी भी गहरी सोच में खोई हुई थी। लेकिन वह आर्य की बातों से काफी पहले ही सहमत हो गई थी। उसने भी हां में सर हिला दिया। “शायद ठीक ही कह रहा है आर्य। हमें पहले सबूतों पर ध्यान देना चाहिए। कोई भी ऐसा सबूत जो हमारी बात को साबित कर सके। जिससे यह पता चल सके कि कोई आचार्य किले गया था।” इसके बाद उसने अपने हाथ में बंधी छोटी फिते वाली घड़ी की तरफ देखा “मुझे पुस्तकालय की सफाई करने की सजा मिली है। तुम दोनों ही अब आश्रम में झाड़ू निकालने का काम करो, क्योंकि गायत्री मंत्र और सरस्वती वंदना का समय निकल चुका है। मैं पुस्तकालय की सफाई करती हूं। अब हमारी अगली मुलाकात शायद खाने के वक्त पर ही होगी। तो वहां देखते हैं हम इस सबूत ढूंढने वाले मामले में आगे क्या करें। कौन सा ऐसा तरीका या रास्ता ढूंढ जिससे हमें सबूत मिल जाए। जिससे पता चले आखिर कौन है वो... कौन है वो अचार्य जो हमारे साथ गद्दारी कर रहे हैं।”
★★★
Horror lover
20-Dec-2021 12:31 PM
Age kya hoga...
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रतन कुमार
19-Dec-2021 11:24 PM
Apno ke bich me hi chupe hote h gaddar jin pr hm saq to kya sich bhi nhi skte h Pr jb bata chalta h to apna hi sr pit lete h ye kese ho gya inhone apne hote hue bhi had pr kr dede
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